छत्तीसगढ़ी गज़ल

अब नगरिहा गाये नहीं, काबर ददरिया।
संगी ला बलाये नहीं, काबर ददरिया।

बेरा-कुबेरा खेत-खार म गुंजत राहय,
हमला अब लुभाये नहीं, काबर ददरिया।

मन के पीरा, गीत बना के जेमा गावन,
अंतस मा समाये नहीं, काबर ददरिया।

कुहकत राहय ओ कोयली कस जंगल मा,
पंछी कस उड़ाये नहीं, काबर ददरिया।

करमा, सुआ अउर पंथी के रहिस संगी,
अपन तान उचाये नहीं, काबर ददरिया।

बलदाऊ राम साहू

Related posts