अब नगरिहा गाये नहीं, काबर ददरिया।
संगी ला बलाये नहीं, काबर ददरिया।
बेरा-कुबेरा खेत-खार म गुंजत राहय,
हमला अब लुभाये नहीं, काबर ददरिया।
मन के पीरा, गीत बना के जेमा गावन,
अंतस मा समाये नहीं, काबर ददरिया।
कुहकत राहय ओ कोयली कस जंगल मा,
पंछी कस उड़ाये नहीं, काबर ददरिया।
करमा, सुआ अउर पंथी के रहिस संगी,
अपन तान उचाये नहीं, काबर ददरिया।
–बलदाऊ राम साहू